Tuesday, June 28, 2011

ये: न: थी हमारी क़िस्मत के विसाले यार होता Ye na thi hamari kismat ke visale yaar hota-Galib

Mirza Ghalib poetry in Hindi
ये:  न:  थी  हमारी  क़िस्मत  के  विसाले  यार  होता
अगर  और  जीते  रहते , यही   इंतज़ार  होता

तेरे  वादे  पर  जिए  हम , तो  ये:,  जान  झूठ  जाना
के  ख़ुशी  से  मर  न: जाते, अगर  एतिबार  होता

तेरी  नाजुकी  से  जाना  के: बँधा  था  अहद  बोदा
कभी  तू  न: तोड़  सकता, अगर  उस्तवार होता

कोई  मेरे  दिल  से  पूछे,  तेरे  तीरे नीमकश  को
ये  ख़लिश  कहाँ  से  होती,  जो  जिगर  के  पार होता

ये: कहाँ  की  दोस्ती  है  के:  बने  हैं  दोस्त,  नासेह
कोई  चारासाज़  होता,  कोई  ग़मगुसार  होता

रगे  संग  से  टपकता  वो: लहू  के: फिर  न:  थमता
जिसे  ग़म  समझ  रहे  हो,  ये:  अगर  शरार  होता

गम   अगर्चे  जाँगुसिल  है,  पे:  कहाँ  बचें  के: दिल है
गमे  इश्क  गर  न  होता,  गमे  रोज़गार   होता

कहूँ   किससे  मैं   के: क्या  है, शबे  ग़म  बुरी  बाला  है
मुझे  क्या  बुरा  था  मरना  अगर  एक  बार  होता

हुए  मर  के:  हम  जो  रुस्वा,  हुए  क्यूँ  न:  गर्के  दरिया
न:  कभी  जनाज़ा  उठता, न  कहीं  मज़ार  होता

उसे  कौन  देख  सकता  के:, यागन:  है  वो: यक्ता
जो  दुई  की  बू  भी  होती,  तो  कहीं  दुचार  होता

ये:  मसाइले  तसव्वुफ़ ,  ये  तेरा  बयान, ग़ालिब !
तुझे  हम  वली  समझते, जो  न:  बादः ख्वार  होता

                                                                                               -मिर्ज़ा असद-उल्लाह: खाँ  'ग़ालिब'

_________________________________________________________________________

विसाले=मिलन ;  अहद  बोदा=कच्ची प्रतिज्ञा ;  उस्तवार=पक्का ;  तीरे नीमकश=अध खींचा हुआ तीर ;
ख़लिश=चुभन ;  नासेह=एक या बहुत से आदमी ;  चारासाज़=उपचारक ;  ग़मगुसार=दुःख का साथी ;  रगे  संग=पत्थर की नस ;  शरार=चिंगारी ;  अगर्चे=यधपि,गोकि ;  जाँगुसिल=कष्टदायक ;
गमे  इश्क=प्रेम का संताप ;  गमे  रोज़गार=संसार की चिन्ता ;  शबे  ग़म=रात्रि का विरह(विरह=जुदाई का दर्द);
रुस्वा=बदनाम ;  गर्के  दरिया=दरिया में डूबना ;  यागन:=अलग ;  यक्ता=अकेला ;  दुई=झगड़ा ;
दुचार=सामने आना ;  मसाइले  तसव्वुफ़=ब्रहमवाद की समस्याएं ;   बादः ख्वार=शराबी ;

Saturday, June 4, 2011

अजब नशात से, जल्लाद के चले हैं हम आगे Ajab nashat se jallad ke chale hain hum aage-Galib

अजब  नशात  से, जल्लाद के चले  हैं  हम आगे
के: अपने साये से सर, पाँव से है दो कदम आगे

कज़ा  ने  था  मुझे  चाहा  ख़राबे  बादः-ए-उल्फ़त
फ़क़त  'ख़राब' लिखा, बस नः चल सका कलम आगे

ग़मे  ज़मानः ने  झाड़ी  नाश्ते  इश्क़  की मस्ती
वगर्न: हम भी उठाते थे लज्ज़ते  अलम  आगे

खुदा  के  वास्ते  दाद  इस जुनूने शौक़ की देना
के  उसके  दर  पे: पहोंचते हैं नामःबार से हम आगे

ये:  उम्र  भर  जो  परीशानियाँ  उठाई  हैं  हमने
तुम्हारे आइयो  ऐ  तुर्र: हाए ख़म  बः  ख़म, आगे

दिल-ओ-जिगर  में  परअफशाँ जो एक  मौज:-ए-खूँ  है
हम  अपने  ज़ओम में समझे हुए थे उसको दम आगे

क़सम  जनाज़े  पे: आने  की  मेरे  खाते  हैं  'ग़ालिब'
हमेशा: खाते  थे  जो  मेरी जान  की  क़सम, आगे 

                                        -मिर्ज़ा असद-उल्लाः खाँ  'ग़ालिब'

_____________________________________________________________________________

नशात=हर्ष;  कज़ा=मौत;  ख़राबे  बादः-ए-उल्फ़त=मदिरा की चाहत मे नष्ट;  ग़मे  ज़मानः=दुनिया के दुःख;
नाश्ते  इश्क़=प्रेम का हर्ष (खुसी);   लज्ज़ते  अलम=दुखों का आनंद;  नामःबार=डाकिया;  
तुर्र: हाए ख़म  बः  ख़म=घूँघरियली बालों की लटें;   परअफशाँ=व्याकुल (बेचैन);
    मौज:-ए-खूँ=खून की लहर;  ज़ओम=घमंड;   दम=सांस;