हम दीवानों की क्या हस्ती
है आज यहाँ , कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला
हम धुल उड़ाते जहाँ चले
आए बनकर उल्लास अभी
आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए , अरे
तुम कैसे आए , कहाँ चले !
किस ओर चले ? यह मत पूछो
चलना है , बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
दो बात कही दो बात सुनी !
कुछ हंसे और फिर कुछ रोए !
छककर सुख-दुःख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले !
हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी-सी उर पर
ले असफलता का भर चले
हम मान रहित , अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
हम हँसते-हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाजी हार चले !
हम भला बुरा सब भूल चुके
नत मस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठा कर होंठों पर
वरदान दृगों पर छोड़ चले
अब अपना क्या पराया क्या ?
आबाद रहें रुकने वाले !
हम स्वयंम बँधे थे और स्वयंम
हम अपने बंधन तोड़ चले !
है आज यहाँ , कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला
हम धुल उड़ाते जहाँ चले
आए बनकर उल्लास अभी
आंसू बनकर बह चले अभी
सब कहते ही रह गए , अरे
तुम कैसे आए , कहाँ चले !
किस ओर चले ? यह मत पूछो
चलना है , बस इसलिए चले
जग से उसका कुछ लिए चले
जग को अपना कुछ दिए चले
दो बात कही दो बात सुनी !
कुछ हंसे और फिर कुछ रोए !
छककर सुख-दुःख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले !
हम भिखमंगों की दुनिया में
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले
हम एक निशानी-सी उर पर
ले असफलता का भर चले
हम मान रहित , अपमान रहित
जी भरकर खुलकर खेल चुके
हम हँसते-हँसते आज यहाँ
प्राणों की बाजी हार चले !
हम भला बुरा सब भूल चुके
नत मस्तक हो मुख मोड़ चले
अभिशाप उठा कर होंठों पर
वरदान दृगों पर छोड़ चले
अब अपना क्या पराया क्या ?
आबाद रहें रुकने वाले !
हम स्वयंम बँधे थे और स्वयंम
हम अपने बंधन तोड़ चले !