Sunday, October 24, 2010

हुस्ने मह गरचे ब हंगामें कमाल अच्छा है Husne mah garche ba hangame kamaal achha hai

हुस्ने मह गरचे ब हंगामें कमाल अच्छा है
उससे मेरा माहे खुरशीद जमाल अच्छा है

बोस देते नहीं और दिल पे है हर लहज निगाह
जी में कहते हैं के मुफ्त आए तो माल अच्छा है

और बाजार से ले आए,अगर टूट गया
सागरे जम से मेरा जामे सिफाल अच्छा है

बेतलब दें तो मजा उसमें सिवा मिलता है
वो गदा, जिसको  न हो खूं-ए-सवाल, अच्छा है

उनके देखे से आ जाती है मुँह पर रौनक
वो समझते है के बीमार का हाल अच्छा है

देखिए,पाते हैं  उशशाक बुतों से क्या फैज़
इक बिरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है

हम सुखन तेशो ने 'फरहाद' को 'शीरीं' से किया
जिस तरह का के किसी में हो कमाल अच्छा है

क़तर दरिया में जो मिल जाए,तो दरिया हो जाए
काम अच्छा है वो,जिसका के मआल अच्छा है

खिज्र सुल्तां को रखे खलिके अकबर सरसब्ब्ज
शाह के बाग में ये ताज निहाल अच्छा है

हमको मअलूम है जन्नत की हकीक़त, लेकिन
दिल के खुस रखे को 'ग़ालिब' ये ख्य अच्छा है  
             
                                          -असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब
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हुस्ने मह=चन्द्रमा का सौंदर्य , हंगामें कमाल=पूर्णिमा के समय ,
माहे खुरशीद जमाल=यहाँ पर तात्पर्य प्रेमिका की सुन्दरता से है ( मह=चन्द्रमा,
खुरशीद=सूर्य,जमाल=सुन्दरता), बोस=चुम्बन ,  सागरे जम=जमशेद का जाम(जमशेद
-इरान का वह बादशाह जिसने एक ऐसा जाम बनवाया था जिसमे सरे संसार को देखा
जा सकता था) , जामे सिफाल=मिट्टी का प्याला , बेतलब=बिनामंगे ,सिवा=अधिक,
गदा=भिखारी , खूं-ए-सवाल=मांगने की आदत 

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