Sunday, October 24, 2010

नुक्तः चीं है, गम-ऐ-दिल उसको सुनाए न बने Nukta chin hai gham-e-dil usko sunae na bane

नुक्तः चीं है, गम-ऐ-दिल उसको सुनाए न बने
क्या बने बात,जहाँ बात बनाए  न बने

मैं बुलाता तो हूँ उसको मगर ऐ जज्ब-ए-दिल !
उस पे बन जाए कुछ ऐसी के बिन आए न बने

खेल समझता है, कहीं छोड़ न दे,भूल न जाए
काश ! यूं भी हो के बिन मेरे सताए न बने

गैर फिरता है लिए यूं तेरे ख़त को,के अगर
कोई पूछे के ये क्या है तो छुपाए न बने

इस नजाकत का बुरा हो,वो भले हैं तो क्या
हाथ आएं, तो उन्हें हाथ लगाए न बने

कह सके कौन के ये जल्वःगरी किसकी है
पर्द छोड़ा है वो उनसे के उठाए न बने

मौत की रह न देखूं ? के बिन आए न रहे
तुमको चाहूँ ? के न आओ,तो बुलाए न बने

बोझ वो सर से गिरा है के उठाए न उठे
काम वो आन पड़ा है के बनाए न बने

इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतश 'ग़ालिब' !
के लगाए  न लगे,और बुझाए न बने

                                -असदुल्ला खान मिर्जा ग़ालिब    

0 comments:

Post a Comment